Saturday, March 26, 2016

डर

भीड़ से भी डरता हूँ,
तन्हाई से घबराता हूँ,
बर्फ़ से जलता हूँ,
आतिश से भी जम सा जाता हूँ,

अब यह  मैं जानता कि ,
क्या मैं उस को चाहता हूँ ,
मैं जीना तो बहुत चाहता हूँ ,
बस दुनिया से डर जाता हूँ,

मौत बुज़दिल ही बुलाया करते हैं अपनी,
उसको तो मैं ठुकराता हूँ ,
बस इसी इक बात से बहादुर कहलाता हूँ,

हाँ हसता तो अब भी हूँ लेकिन,
 मगर रोने के बहाने ज़्यादा पाता हूँ ,

अक्सर अकेले में यूँ ही कुछ लिख जाता हूँ ,
पढ़ के बाद में समझ ना पाता हूँ,
शायद ऐसे ही चलते रहना देना
सच्चाई से किसी घबराता हूँ ,
सच्चाई से किसी घबराता हूँ। 

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