Thursday, March 24, 2016

बबलगम और स्टिकरों वाला बचपन

बारह आने के चार ,
हर बबल गम के साथ एक करोड़ रुपैय्ये की गाड़ियों के स्टिकर,
पता नहीं स्टिकर के चक्कर में कितने चिल्लर खा गया,
दांत सड़ गए , बचपन बन गया,

लॉजिकली बेवकूफी हैं ,
पर अच्छा हैं मैंने यह बेवकूफियां की,

मैंने दिल की बात सुनना छोड़ दिया था,
बस वही इक भूल हो गयी थी ,
कुछ १० साल लगे सुधरने में ,

कुछ भारी भरकम फिल्में देख देख कर ,
कुछ फिलोसोफिकल किताबें पढ़ पढ़ कर वो सीधी साधी सरल बातें याद आईं ,

बचपन बस यादों में बस कर ठेंगा दिखता है अब लेकिन,
बस यादों में



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