करना चाहता भी हूँ. यही मेरी प्रेरणा हैं चलते रहने की , ना रुकने की.
एक और नजरिया हैं - जो मुझे ज़्यादा पसंद नहीं -
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन,
उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा हैं।
(शानदार गाना हैं - चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनो)
मेरी कहानी
details में जाए बिना कहानी यह हैं - लगभग दो साल पहले ३ लोगो की टीम थी मेरी software consulting की (मुझे नहीं लगता software के अलावा मुझे कुछ भी आता हैं :-) ). सब लोगो की ही तरह दो विकल्प थे जब मैने अपनी आखिरी नौकरी छोड़ी थी -consulting या product building। कहने की ज़रुरत नहीं की क्यों छोड़ी होगी। वो रूमानी कीड़ा जो स्वयं और काम को हमेशा जोड़ कर देखता था ५-६ सालों से छट्पटा रहा था। एक उम्मीद भरी छलांग ( leap of faith ) मारी थी मैंने. उम्मीद बहुत थी , प्लान गायब था। कहीं न कहीं चीज़ें अपनी जगह फ़िट होती गईं और मैं ठीक ठाक करने लगा। इतना ठीक कि तीन लोगो की एक टीम को १.५ साल तक रख लिया इन्हीं डेढ़ सालो में एक समय (करीब ६ महीने बाद ही) सोचा कि अब कुछ बनाया जाए - कुछ प्रोडक्ट जो कोई समस्या सोल्वे करें , दिमाग में ideas पहले से थे पर refined नहीं थे। उस दिशा में थोड़ा काम किया तो एक दो ideas पर प्रयास शुरू किया। महा बकवास था अंजाम उस शुरु के सफर का। मैं और एक टीम का मेंबर इस में शामिल थें। बहुत चीज़े सीखीं पहले ३-४ महीने में , जिसमे हमने २ ideas को वापस ठन्डे बस्ते में डाल दिया।
कहानी ड्रीम प्रोजेक्ट की।
मैं पढता कम हूँ , बहुत पढ़ना शुरुं किया। भेजा कंफ्यूज हो गया और मुझे लगा एकदम से दुनिया में सब बदल दूंगा मैं।
कुछ और अकल आई एक दो हफ्ते में, (कुछ और पढ़ पढ़ के) - और मैंने एक प्रॉब्लम नोटिस की जो सुलझाई जा सकती थी , लेकिन बहुत आसान प्रोजेक्ट नहीं था यह।
मैं ज़िद सी पे अड़ गया था , वहाँ से आगे बढ़ के दो तीन और आइडियाज पे वेलिडेशन किया , मगर मेरा ध्यान वहीँ अटका हुआ था। जुलाई २०१४ में मैं पिता बना इक लक्ष्मी का, और इसको शुभ संकेत मान कर मैंने वही अटके हुए whiteboard पर लौटने का विचार बनाया। मेरी टीम ने मेरा समर्थन किया। जिससे हौसला बढ़ा। मैं इसे अपना ड्रीम प्रोजेक्ट मानता हूँ।
मैंने करीब १० साल IT industry में। कुछ अच्छे , कुछ वाहियाद projects पे काम किया। मगर इतना ambitious /महत्वकांशी system बनाने में कभी शामिल नहीं था।
मुझे शुरुआत से मालूम था , यात्रा आसान नहीं होने वाली (जो अभी भी जारी हैं)
हाँ मैं यह भी सुन चूका हूँ कि MVP ३ महीने में आ जाना चाहिए मार्किट में और हमको कुछ १ साल लगा :-( .
एक स्वचालित / bootstrapped सेटअप में काम करने के अपने फायदे और नुक्सान होते हैं , एक कंसल्टिंग + product बिल्डिंग के भी। हमने दोनों देखे हैं। कभी अफ़सोस भी हुआ। फिर कुछ अच्छी ख़बरें मिलती हैं तो ख़ुशी होती हैं जैसे (housing और tinyowl की :-P )
Point क्या हैं ?
सपना होना चाहिए आपका काम , यही पाश ने मुझे सिखाया अपने लेखन से। बाकी मैं उनकी क्रांतिकारी जीवन पे टिप्पणी नहीं करता।
मगर सपना हैं मेरा ये project . और सपना होना चाहिए आपका हर project . और उस सपने को टूटने से बचाने की ऊर्जा आपमें स्वयं आ जाएगी। मुझमे हैं। आप खुद रास्ते निकाल लेंगे जो भी ज़रूरी हैं वो करने के लिए , उस सपने को बचाने के लिए।
अगर किसी ने यहाँ तक पढ़ा हैं तो शुक्रिया , आप में हैं कुछ स्पेशल , क्यूंकि लोग कहते नहीं मगर मैं बहुत बढा चाट हूँ . :-)
भीड़ से भी डरता हूँ,
तन्हाई से घबराता हूँ,
बर्फ़ से जलता हूँ,
आतिश से भी जम सा जाता हूँ,
अब यह मैं जानता कि ,
क्या मैं उस को चाहता हूँ ,
मैं जीना तो बहुत चाहता हूँ ,
बस दुनिया से डर जाता हूँ,
मौत बुज़दिल ही बुलाया करते हैं अपनी,
उसको तो मैं ठुकराता हूँ , बस इसी इक बात से बहादुर कहलाता हूँ,
हाँ हसता तो अब भी हूँ लेकिन,
मगर रोने के बहाने ज़्यादा पाता हूँ ,
अक्सर अकेले में यूँ ही कुछ लिख जाता हूँ ,
पढ़ के बाद में समझ ना पाता हूँ,
शायद ऐसे ही चलते रहना देना सच्चाई से किसी घबराता हूँ ,
सच्चाई से किसी घबराता हूँ।
चार प्लेट भटूरे हो या एक प्लेट कचौरीं,
दिल भर के खाते थे, पेट भरे, ना भरे,
अब कैलोरीयो का मीटर चलता हैं हर निवाले पर,
दिल साला भरता ही नहीं कभी,
लगता है पेट की बारी बड़ी जल्दी आ जाती है अब,
मेरी भूख-प्यास सब लूट गया,
मेरा सुन्दर सपना टूट गया,
एक रिक्शा और एक दोपहर में,
घर बदल लेते थे,
अब एक ट्रक और एक वीकेंड लग जाता है,
पर मकान ही बदल पाते हैं,
घर अब मिलता नहीं ,
दूर कहीं छूट गया,
मेरा सुन्दर सपना टूट गया,
आज वो चौराहे का पत्थर,
मुझे आवारा कहता हैं,
ये बांवरी हवा ही अब बस मुझ सी दिखती हैं,
यही मेरे ख्वाब सुहाने, ले कुछ बादलों के संग मुझ पर बरसाती हैं,
वक्त मेरा बाकी सब कुछ लूट गया
मेरा सुन्दर सपना टूट गया,