चार प्लेट भटूरे हो या एक प्लेट कचौरीं,
दिल भर के खाते थे, पेट भरे, ना भरे,
अब कैलोरीयो का मीटर चलता हैं हर निवाले पर,
दिल साला भरता ही नहीं कभी,
लगता है पेट की बारी बड़ी जल्दी आ जाती है अब,
मेरी भूख-प्यास सब लूट गया,
मेरा सुन्दर सपना टूट गया,
एक रिक्शा और एक दोपहर में,
घर बदल लेते थे,
अब एक ट्रक और एक वीकेंड लग जाता है,
पर मकान ही बदल पाते हैं,
घर अब मिलता नहीं ,
दूर कहीं छूट गया,
मेरा सुन्दर सपना टूट गया,
आज वो चौराहे का पत्थर,
मुझे आवारा कहता हैं,
ये बांवरी हवा ही अब बस मुझ सी दिखती हैं,
यही मेरे ख्वाब सुहाने,
ले कुछ बादलों के संग मुझ पर बरसाती हैं,
वक्त मेरा बाकी सब कुछ लूट गया
मेरा सुन्दर सपना टूट गया,
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